आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(न)
नई उमंगें नई तरंगें, सपने नये सजायेंगे।
भारत माता के सपूत हम, इसकी शान बढ़ायेंगे।।
नई डगर नया सफर, कदम मिला के चल।
नौनिहाल देश के यूँ मुस्कुरा के चल॥
न करि नाम रंग देखि सम, गुन बिन समझे बात।
गात घात गौ दूध तें, सेहुड़ केते घात॥
नग पाषाण जग सकल है, पारखि बिरला कोय।
नग ते उत्तम पारखी, जग में बिरला होय॥
नन्द नंद गोविन्द जय, सुख मंदिर गोपाल।
पुंडरीक लोचन ललित जय, जय कृष्ण रिसाल॥
नन्हें बच्चों आने वाले, कल की तुम तस्वीर हो।
नाज करेगी दुनिया तुम पर, दुनिया की तकदीर हो॥
न मिलता चैन यों! भौतिक, प्रगति कितनी भले कर लो।
अगर हो शान्ति की इच्छा, हृदय अध्यात्म में भर लो॥
नमो वेद माता, नमो देव माता।
नमो आद्यशक्ति नमो विश्व माता॥
नयन-नयन में हृदय-हृदय में, विकल वेदना छाई।
अन्तर छलके आँसू ढुलके, करुणा भरी विदाई॥
नया भोर हँसता आता है, मुस्काती आती उषायें।
चलो समय का शंख बजाकर, युग की नई आरती गायें॥
नया युग आ रहा है, रूढ़ियाँ प्राचीन छोड़ो तुम।
जरूरत आ पड़ी है, काल की भी चाल मोड़ो तुम॥
नया युग क्यों न आयेगा जगत हित में मरेंगे हम।
न कैसे आयेगी गंगा? भगीरथ श्रम करेंगे हम॥
नया सवेरा नया उजाला इस धरती पर लायेंगे।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने, हम घर-घर में जायेंगे।।
नया ही क्रम नये संसार का हमने बनाया है।
बहे निर्माण की गंगा सृजन का पर्व आया है।।
नये जगत की नई कल्पना को आओ साकार बनायें।
चलो नया संसार बसायें, चलो नया संसार बसायें।।
नये देश को मैं नई शक्ति दूँगा।
कि युग को नई एक अभिव्यक्ति दूँगा॥
नये सृजन की ऊर्जा ले, यह मधुर लहर आयी है।
मन की सरसों लहराती, ऋतु वासंती आयी है।।
नये स्वरों में राष्ट्र देवता ने, फिर तुम्हें पुकारा।
प्राण ज्योति ले आगे आओ, मिट जाये तम सारा॥
नर की अरु नलनीर की, गति एकै करि जोइ।
जेतो नीचो है चले तेतो ऊँचो होइ॥
नव किरणें दौड़ आती हैं, चीर रात की स्याही।
अंधकार में मत भटको, जीवन पथ के राही॥
नवयुग की गीता के गायक, शत शत तुम्हें प्रणाम है।
आत्म चेतना के उन्नायक, शत शत तुम्हें प्रणाम है॥
न सिद्धान्त की सिर्फ देंगे दहाई।
शपथ ले रहे हैं, सृजन के सिपाही॥
न सोओ राष्ट्र के प्रिय प्राण जागो।
उठो अपना करो परित्राण जागो।।
न सोचो अकेली किरण क्या करेगी।
तिमिर में अकेली किरण ही बहुत है।।
नहा लो चाहे सारे तीर्थ, घूम लो चाहे चारों धाम।
तुम्हारे कर्मों के अनुसार, मिलेगा निश्चय ही परिणाम॥
नहिं पावस ऋतुराज यह, सुनि तरुवर मति भूल।
अपत भये बिनु पाइहै, क्यों नव दल फल फूल॥
न हो ओ साधक तू लाचार, मिलेगा नव बल का संचार।
तेरी रक्षा को है मां का दुलार, तू है प्रभु का राजकुमार॥
नाँव न जाने गाँव का, भूला मारग जाय।
काल गड़ेगा कॉटा, अगमन खसी कराय॥
नाद रीझि तन देत मृग, रहिमन हेत समेत।
ते रहीम पसु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
नाना रंग तरंग है, मन मकरन्द असूझ।
कहहिं कबीर पुकारि के, तै अकिल कला ले बूझा।।
नारि कहावै पीव की, रहे और संग सोय।
जार मीत हृदया बसे, खसम खुशी क्यों होय॥
नारी को आज जरूरत है कुछ, करतब नया दिखाने की।
अपने परिवार और संतति में, शुभ संस्कार जगाने की॥
नारी तेरी साध सुगढ़, परिवार बनाती थी।
रत्न प्रसविनी! तू देवों को गोद खिलाती थी॥
नारी ने हर एक धर्म को, जीवित रखा जहान में।
इसके लिए शक्ति दी उसको, दुनिया के भगवान ने॥
नारी शक्ति जगी भारत की, करके नव हुंकार।
जीवन के कोने-कोने को, अब वह रही सँवार॥
निज कर क्रिया रहीम कहि सिधि भावी के हाथ,
पॉसा अपने हाथ में, दॉव न अपने हाथ॥
निज हृदय का सेह कण-कण देव पर चढाकर।
राष्ट्र मंदिर का पुनर्निमाण करना है हमें तो॥
निर्बल मिलकर परस्पर वस्त्र बनाया सूत।
मिलो परस्पर दौड़कर हर्षित भारत पूत॥
निशदिन करतब कर्म करूँ, जग में कर्म प्रधान।
तुलसी ना लखि पाइयौ, किये अमित अनुमान॥
निष्ठा लगन परिश्रम से जो, करता अपना काम है।
उसका ही जीवन इस जग में, धन्य धन्य अभिराम है।।
नीच निचाई नहिं तजइ, जो पावै सत्संग।
तुलसी चंदन विटप वसि, विष नहिं तजत भुजंग॥
नीच संग सम जानिये, सुनि लखि तुलसीदास।
ढील देत भुंइ गिर परत, खेचत चढ़त अकास॥
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम, सदा क्षीर सागर सयन॥
नूतन युग की है यह चाह, करो सभी आदर्श विवाह।
फिर न रहेगी कन्या क्वाँरी, होगी नहीं पिता की ख्वारी॥
नूतन युग निर्माण हो रहा, जागो युग निर्माणी।
तुममें शक्ति असीम तुम्हारी, पौरुष युक्त कहानी॥
नौ जवानो उठो वक्त यह कह रहा,
खुद को बदलो जमाना बदल जायेगा।।
शक्तियों को लगाओ सही कार्य में,
देश का विश्व का भाग्य खुल जायेगा।।
नौ जवानो उन्हें याद कर लो जरा,
जो शहीद हो गये इस वतन के लिए।।
जल रही है उन्हीं के लहू से शमाँ,
आज तक रौनके अंजुमन के लिए॥
नौजवानो भारत की तकदीर बना दो।
फूलों के इस गुलशन से काँटों को हटा दो॥
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